Friday, March 2, 2012

हैलो! पटना !!!



सितम्बर २००५ में रुनझुन मुज़फ्फरपुर को अलविदा कह, बिहार की राजधानी पटना आ गयी.... नया शहर... नए लोग... नया स्कूल... सब कुछ नया-नया.... शुरू में कुछ दिन तो रुनझुन को इस नए शहर में बिलकुल भी अच्छा नहीं लगा... उसे अपने पुराने घर और वहाँ के लोगों की बहुत याद आती थी... इसलिए वो कुछ उदास रहने लगी... बस, भाई के साथ खेलकर ही उसे कुछ अच्छा लगता...   

नए घर में उदास बैठी बेटी 

यूँ तो सबसे अच्छा, सबसे सच्चा, प्यारा दोस्त
साथ था...  

लेकिन पिछली यादें साथ ही न छोड़ती...

जब कई दिनों तक रुनझुन की ये उदासी खत्म ना हुई तो फिर मम्मी-पापा  उसे पटना का चिड़ियाघर (Zoological and Botanical Garden) जिसे संजय गाँधी जैविक उद्यान भी कहते हैं, दिखाने ले गए... वहाँ जाकर रुनझुन को लगा जैसे वो किसी दूसरी ही दुनिया में आ गयी है... वहाँ रुनझुन के सबसे प्यारे दोस्त यानि ढेर सारे पेड़-पौधे तो थे ही साथ ही  इतने सारे छोटे-बड़े जानवर, तरह-तरह के पक्षी..... शेर, भालू, चीता, जेब्रा, दरियाई घोड़ा, मगर, घड़ियाल, हिरन, बारहसिंगा, हेमू, खरगोश, बन्दर, लंगूर, मोर, तोता, सारस, बगुला....... और...और.....और भी बहुत सारे पशु-पक्षी जिन्हें वो अपनी रंग-बिरंगे चित्रों वाली किताब में या फिर कभी-कभी टेलीविजन पर देखा करती थी.... आज उन सबको इतने पास अपनी आँखों से चलते-फिरते, उछलते-कूदते देख कर उसके आश्चर्य का ठिकाना न था... बस फिर क्या था थोड़ी ही देर में रुनझुन का मूड फ्रेश हो गया... 








Beautiful white Tiger 


कुछ दिखा ?...नहीं ?.... अरे ! ज़रा ध्यान से देखिये ..
वो रुनझुन के पीछे कोने में टाइगर दुबक के बैठा है..
शायद रुनझुन से डर गया!!!!!...ही-ही-ही!!!!


तभी घूमते-घूमते अचानक रुनझुन चौंक पड़ी!!!! 

अरेsss!! इत्तीsss बड़ी मछली????.... 

लेकिन तब मम्मी ने बताया कि ये Fish Aquqrium है, इसके अंदर तरह-तरह की रंग-बिरंगी मछलियाँ देखने को मिलेंगी.... ये Aquarium एक बड़ी सी मछली के आकार का था... 


ये रहा Aquarium का आगे का भाग...  


और ये उसका बाकी हिस्सा 


अंदर बहुत सुन्दर-सुन्दर छोटी-बड़ी मछलियाँ थी, उनकी फोटो तो नहीं खीच सके लेकिन उन्हें देखकर रुनझुन बहुत खुश हुई...और क्यों न हो इससे पहले उसने अपनी किताबों में मछलियों के चित्र भर ही देखे थे...यूँ रंगबिरंगी मछलियों को चलते-फिरते-तैरते देखकर रुनझुन ख़ुशी से उछल पड़ी....
चिड़ियाघर में पशु-पक्षी, हाथी की सवारी, टॉय ट्रेन के अलावा एक और अनोखी चीज़ थी जो रुनझुन के लिए बड़ी ही कौतूहल भरी थी... बता सकते हैं क्या ???......
                      गौर से देखिये तो ज़रा.....................


आप पहचान गए न!.... लेकिन रुनझुन नहीं समझ पा रही थी कि ये कुछ-कुछ ट्रेन जैसी दिखने वाली क्या चीज़ है.... वो झट से उसमें चढ़ गयी... बाद में उसे पता चला कि ये भाप से चलने वाला इंजन है, बहुत साल पहले ट्रेन ऐसे ही इंजनों द्वारा चलती थी... रुनझुन हैरान.... झटपट उसने अंदर जाकर इधर-उधर देखा लेकिन.......

उसकी कुछ समझ में नहीं आया कि आखिर ये चलता कैसे है 

ना! ये तो चलता ही नहीं बस एक जगह खड़ा है!!!


और अंततः कुछ-कुछ समझते... कुछ-कुछ न समझते हुए रुनझुन इंजन में से उतर गई... ये इंजन तो चला नहीं.. लेकिन कोई बात नहीं टॉय ट्रेन ने तो उसे पूरा चिड़ियाघर घुमा ही दिया था..... रुनझुन खुशी-खुशी घर की ओर चल दी....... हाँ, घर जाते समय अब वो अपने इस नए शहर से भी बहुत-बहुत खुश थी... इस नए शहर में बहुत अच्छी-अच्छी चीजें उसे देखने को मिली.... हाँ, अब उसे अपना ये नया शहर भी अच्छा लगने लगा था...। 




6 comments:

  1. कल 03/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  2. रुनझुन की प्यारी -प्यारी चित्रों को देखकर बहुत अच्छा लगा ....रुनझुन हमेशा खुश रहे .

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  3. रुनझुन बिटिया को शुभकामनाएँ.

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  4. रूनझुन की दुनिया यूँ हीं खुशियों को समेटे रहे....:)

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  5. सुंदर प्रस्तुति ... रुंझुन को आशीर्वाद

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  6. हेल्लो ॥ runjhun .... हल-चाल ब्लॉग के द्वारा तुम्हारे ब्लॉग तक आया... इसमें मेरी भी एक कविता लिंक है " मैथेमेटिक्स".... आशा है ... तुम्हें भी पसंद आएगी .... मैं भी पटना में ही रहता हूँ ... चिड़ियाँ खाना के पीछे वाले कोलोनी में... लाल बाबु मार्केट के पास

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