Tuesday, June 19, 2012

हरे जनाब...


आइये आज मैं आप सबकी मुलाक़ात एक हरे जनाब से करवाती हूँ.... अरे!अरे! चौंकिये मत! मेरा मतलब किसी हरे रंग के आदमी से नहीं बल्कि हरे-हरे पक्षी मिठ्ठू तोते से है... क्या सोच रहे हैं आप...? यही न कि अचानक ये हरे जनाब कहाँ से आ गए !!!.... Let me tell you from the starting....


हमारे बनारस पहुँचने के तीन दिन पहले एक हरा तोता हमारी छत पर जाने कहाँ से उड़ते-उड़ते आ गया...  नानी ने छत पर उसे देखा तो सोचा कि अन्य पक्षियों की तरह वो भी कहीं से उड़कर आ गया होगा अपने आप चला जायेगा और वो छत से नीचे आ गईं... अगले ही पल उन्होंने देखा कि वो तोता भी उनके साथ नीचे आ गया है... फिर क्या ?... मिठ्ठू मियाँ ने तो हमारे घर को अपना ही अड्डा समझ लिया... दिन भर अलग-अलग तरीकों से सबका मनोरंजन करने लगे... कभी मिठ्ठू-मिठ्ठू की सुरीली पुकार लगाते तो कभी जोरदार सीटी बजाते... यही नहीं जब सब डाइनिंग टेबल पर खाना खाने बैठे तो मिठ्ठू मियाँ भी आकर टेबल पर विराजमान हो गए और सबके साथ उन्होंने भी वहीं बैठकर खाना खाया... रात को भी वे घर में ही सोये और जब अगली सुबह नानी पूजा करने बैठीं तो ये "हरे जनाब" अचानक उनके सिर पर आकर बैठ गए... ऐसे ही दिन भर तरह-तरह की अजीबोगरीब आवाज़ें निकालते रहते और पूरे घर में इधर से उधर डोलते रहते....

यूँ ही देखते-देखते तीन दिन बीत गए... मिठ्ठू मियाँ तो हमारे घर में ही जम गए... जाने का नाम ही नहीं ले रहे थे.... लेकिन अब हरे जनाब घर में जहाँ-तहाँ गन्दगी फैलाने लगे... वो नानी की रसोई में भी पहुँचने लग गए  कोई भी चीज़ जूठी करके फेक देते... अब तक जनाब घर को कुछ-कुछ पहचानने लग गए थे इसलिए वे थोड़ा-थोड़ा उड़ कर आँगन से रसोई और फिर दूसरे कमरों में भी जाने लगे... इससे एक परेशानी उत्पन्न हो गई... इतनी गरमी में तो हर कमरे में पंखा चलता है.... इसलिए एक तो उन्हें चोट लग जाने का डर था और दूसरी तरफ़ ये जनाब बिजली के तारों को अपनी चोंच से पकड़-पकड़ कर उतरने-चढ़ने लगे जिससे उन्हें करेंट लग जाने का भी खतरा था तो फिर नानी ने सोचा कि अब जब प्यारे मिठ्ठू जी हमारे घर को छोड़कर जाने को तैयार नहीं हैं तो फिर क्यों न उन्हें पूरी तरह से हमारे ही परिवार का सदस्य बना लें ?.... परिणाम स्वरूप घर के अन्य सदस्यों की तरह उन्हें भी एक कमरा दे दिया गया.... मिठ्ठू राम को किस प्रकार का कमरा मिला होगा उसका अंदाज़ा तो आपको हो ही गया होगा... जी हाँ !!!... ये है मिठ्ठू मियाँ का "Mini Cage"


ये देखिये.....
मिठ्ठू मियाँ अपने कमरे का निरीक्षण कर रहे हैं


इनके रूम के अंदर इनके अंदाज़ तो देखिये... बिल्कुल स्टार जैसे... लगता है कि इन्हें पिंजड़े में नहीं बल्कि स्टेज पर खड़ा कर दिया गया है...

ह्म्म्म कमरा तो अच्छा है... मैं खुश हुआ..!!!


बर्तनों को देख अब मुझे भूख लग गयी है..
खाना खा के आपसे मिलूँगा...
है न हमारे मिठ्ठू मियाँ कमाल के !!!......

वैसे आप सबको पता है? इन मिठ्ठू मियाँ को देखकर मैंने एक कविता भी लिखी... आइये आप सबको दिखाऊं:

जीव है ये हरा-हरा
बतलाओ तो तुम ज़रा
 कौन हैं ये हरे जनाब?
 दिनभर रटते मिठ्ठू-राम |
लाल रंग की चोंच है इनकी
छोटे-छोटे पाँव हैं |
मानव जैसी वाणी इनकी
हरी मिर्च से प्यार है |
नक़ल करने में नंबर-वन
कलाबाजी है हॉबी इनकी |
रोज नहाते,खूब हैं खाते
हम सबके ये मिठ्ठू राम || 



कैसी लगी मेरी कविता ?..... मुझे ज़रूर बताइयेगा.... 


ओ.के फ़्रेंड्स! अब मैं चलती हूँ... जल्दी ही फिर मिलूँगी...तब तक के लिए बाय-बाय... 








Monday, June 18, 2012

Father's Day

हेलो फ्रेंड्स!!
कैसे हैं आप सब??... मेरी गर्मी की छुट्टियाँ अब समाप्त हो गयी... हम वाराणसी से 14 जून, 2012 को चल कर 16 जून को वापस गाँधीधाम आ गए... आज मेरे स्कूल का छुट्टियों के बाद पहला दिन था.. मुझे बहुत मज़ा आया... इन छुट्टियों की बहुत सारी बातें आपसे शेयर करनी है लेकिन सबसे पहले मैं कल की बातें करना चाहती हूँ....जी हाँ कल यानि 17 जून, 2012 जो एक बहुत ही खास दिन था... आपको भी तो पता है न कि कल था... पितृ-दिवस.. मतलब ''फ़ादर्स डे'' (Father's Day)... तो फ्रेंड्स, किसी भी इवेंट के पहले हम सब क्या करते हैं....?.... जी हाँ.... उसके बारे में जानते हैं.... तो आइये कुछ जाने फ़ादर्स डे के बारे में...

''फ़ादर्स डे'' के दिन मैं सुबह टी.वी देख रही थी तभी मैंने एक कहानी पढ़ी तो सोचा कि आप सब से भी शेयर कर लूँ...
फ़ादर्स डे कैसे शुरू हुआ?
बहुत साल पहले यू.एस.ए. में ''सोनारा डोड'' नामक एक लड़की रहती थी.. उसकी माँ का निधन हो गया था और वो अपने पापा और 5 भाइयों के साथ रहती थी.. एक दिन रविवार को वो अपने पापा के साथ चर्च गयी और वहाँ पर उसे ''मदर्स डे'' के बारे में पता चला.... और तब उसने सोचा कि यदि मदर्स डे होता है तो एक दिन हमारे पिताओं को भी समर्पित होना चाहिए... उसने फ़ादर्स डे मनवाने का दृढ़ निश्चय कर लिया और एक औपचारिक पत्र भी भेजा... आखिरकार सन 1923 में फ़ादर्स डे को औपचारिक रूप से स्वीकार कर लिया गया... येsssss.....!!! थैंक्यू ''सोनारा डोड'' अगर आप ने फ़ादर्स डे मनाने का दृढ़ निश्चय नहीं किया होता तो आज हमारे पिताओं को एक भी दिन समर्पित नहीं होता...

अब चलिए मैं आपको दिखाती हूँ कि मैंने अपना फ़ादर्स डे कैसे मनाया...
मैंने अपने पापा को एक प्यारा सा कार्ड दिया प्यारे से मैसेज के साथ... 


Dear Father,
You are a great soul.
You always serve us
Your love, care and
many more things
which can't be written...
Your hands are always on me
and when I need them
You give me frequently....

Your ears are always open
to hear our secrets,
and some nonsense
which we whisper in.
Sometimes you go impatient
and punish us too
to make us a great person
like you !!!

'O' Papa,
you are wonderful...
we're gonna love
and obey you...

Have a wonderful day !
Keep smiling !!! 


भाई ने भी पापा को अपने हाथों से बना कार्ड दिया....


है ना बहुत ही प्यारा सा कार्ड !!!


और सचमुच पापा बहुत-बहुत खुश हुए उन्होंने प्यार से हमें गले लगा लिया....


My father is my Hero !!!
He is really Great !!!







Friday, June 8, 2012

Hello Varanasi

हेलो फ्रेंड्स!!!
I am back after a long time!!!!
आप सबको तो पता ही होगा कि मेरे ग्रीष्म अवकाश चल रहे हैं...  
नहीं? तो चलिए मैं आप सबको अभी बता देती हूँ...

4 मई '12 से मेरे ग्रीष्म अवकाश शुरू हो गए थे और फिर 6 मई की ट्रेन से हम (मैं, माँ, पापा और भाई) दिल्ली आ गये (गांधीधाम से वाराणसी डाइरेक्ट रिज़र्वेशन नहीं था)| और वहाँ प्रशांत मामा हम सब का इंतज़ार कर रहे थे... हमारे स्टेशन पहुँचते ही उन्होंने हम सबको रिसीव किया...लेकिन दिल्ली से बनारस की ट्रेन में तो पाँच घंटे बाक़ी थे और हम सब के पेट में चूहे कूदने लगे...इसलिए हम सब दिल्ली के एक रेस्टुरेंट में गए- पिंड बलूची ....फ्रेंड्स! पता है... मैं आप सबके साथ वहाँ के कुछ फ़ोटोज़ शेयर करना चाहती थी...पर कुछ प्रॉब्लम की वजह से नहीं कर पाई...कोई बात नहीं, तब-तक आप मरे वहाँ के वर्णन से ही काम चला लीजिए...

आहा!! भूखे पेट में जब खाना गया तो आराम मिल गया....ह्म्म्म, अब तो हमारी ट्रेन का समय हो गया है....बाय-बाय दिल्ली...अब मैं चली बनारस- मेरे नाना- नानी के घर....कुछ ही देर बाद ट्रेन आ गई और हम उसमे सवार  हो गए..रात को आराम से सोने के बाद हम पहुँच गए बनारस (वाराणसी)!!!


अब आप सब सोच रहे होंगे कि यदि मैं 8 मई को ही बनारस पहुँच गई थी तो आप सब से मेरी इतने दिनों तक बात कैसे नहीं हो पाई? क्या बताऊँ फ्रेंड्स! बनारस में लाईट की काफी प्रॉब्लम है इसलिए मैं आप लोगों से बातें नहीं कर पाई...और अब मेरी छोटी-सी बहना (मेरे प्रशांत मामा की बेटी) बड़ी हो गयी है इसलिए मेरा ज़्यादा समय उसी के साथ बीत जाता है..अरे-अरे आप ये मत समझिए कि छुट्टियों में मैं सिर्फ अपना समय खेलने में ही बिताती हूँ...मैं पढ़ाई भी करती हूँ....वैसे, I am Sorry!!! लेकिन अब तो मैं वापस आ गई हूँ...बातों का पिटारा लेकर....तो चलिए शुरू करें...


दोस्तों क्या अप सब को याद है कि 13 मई को क्या था? जी हाँ अपने ठीक समझा..13 मई को था मदर्स डे (Mother's Day) यानी हमारी प्यारी- प्यारी माओं का दिन!!! और ऐसे में मैं अपनी माँ को कुछ गिफ़्ट कैसे न देती ? आइये आपको दिखाऊँ कि मैंने अपनी प्यारी -प्यारी माँ को क्या गिफ़्ट किया....








तो फ्रेंड्स कैसा लगा आपको मेरी माँ के लिए ये गिफ़्ट? ये थे वो तीन पेज, जिस पर मैंने अपनी प्यारी माँ के लिए अपने हाथों से लिखी थी ये कविता....मैं अपनी माँ के बारे में जो भी सोचती हूँ उसे यहाँ लिख दिया...क्या आप सब भी अपनी माओं के लिए यही सोचते हैं? मेरी माँ ही मेरी सब-कुछ हैं और उन्हें ये बताने के लिए मेरी टूटी-फूटी भाषा में ये थी मेरी एक कोशिश.....


अच्छा फ्रेंड्स अब मैं चलती हूँ वर्ना ''Electricity'' बहना दोबारा चली जाएँगी..:) और हाँ! आप सब भी मुझे बताइयेगा कि आप सबने मदर्स डे पर अपनी माँ के लिए क्या किया...O.K? और हाँ आज के लिए एक प्रॉमिस- नेक्स्ट टाइम आपसे जल्दी मिलूंगी..


बाय-बाय!!!


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